Tuesday 23 January 2018

पिछले दिनों असुरक्षित हुये हरियाणा के माहौल पर ।

हरियाणा मे पिछले एक-दो हफ्ते से दिल को दुखाने वाली खबरें आ रही हैं। खबरें कहलो या फिर टूटती इंसानियत बदनियत का पर्दाफाश कहलो। ऐसी खबरें मन को झकझोर कर रख देती है सोचने पर मजबूर कर देती है कि हम किसी समाज की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। क्या समाजिक रिश्तों का पतन हो रहा है, क्या समाज के अंदर एक टूट समाज को कमजोर करती जा रही है। अगर पिछले दिनों बीती घटनाओं पर गौर कर उन घटनाओं का अध्ययन किया जाये तो सिर्फ एक ही बात का अध्ययन होता है कि इस समाज मे ऐसे कुताकिस्म के लोगों की संख्या मे बढ़ोतरी हो चुकी है जिनको बस मौका देखकर अपनी हवस को दूर करना है चाहे रिश्तेनाते हों, चाहे सभ्य समाज मे अपने सभ्य चेहरे को छिपाये बिना असभ्यता की ओर बढना हो।


झांसा गांव की बिटिया की निर्दयतापूर्वक रेप कर हत्या करने की घटना दिल को झकझोर गई। दिल पसीज गया कि आखिर हमारा समाज किस तरफ अग्रसर हो रहा हैं। महसूस करके देखा जाये तो हम अपनी संस्कृति को पीछे छोडकर समाजिक बंधनों को तोडकर गैर-सांस्कृतिक व्यवस्था की तरफ बढ़ रहे हैं। हमारी संस्कृति ऐसी तो नही थी, हमारे लोग इतने निर्दयी तो नही थे, हमारी सरकारें इतनी लाचार तो नही थी जो बेटियों को सुरक्षा ना दे पाये।

आजकल दौरे-सत्ता कुछ ऐसा आया है अगर कुछ खिलाफ लिखो तो पत्रकार की पत्रकारिता पर सवाल सत्ता उठा देती है, पक्ष मे लिखो तो विपक्ष को नागवार गुजर जाता है। मुद्दे की बात यही है कि मेरे इस लेख से मेरी निष्पक्षता पर भी सवाल उठ सकते हैं मेरी निष्पक्षता का राजनीतिकरण भी हो सकता है समाजिकरण भी। मुझे चमचा भी बताया जा सकता है मुझे समाज की कुरीतियों को लिखने के कारण समाज का विरोधी भी। आज कल फैल रही हर समाजिक समस्या के खिलाफ सबको गैर-राजनीतिक तौर पर एकत्रित होना पडेगा। पत्रकार की कलम को भी इन मुद्दों को मुख्यतः उठाकर सत्ता को घेरना होगा, विपक्ष को भी सवालों के घेरे मे लेना होगा। क्यों राजनीति शुरू हो जाती, क्यों पार्टी के पोस्टरों के साथ कार्यकर्ताओं की भीड़ इकट्ठी कर मोमबत्ती जला दी जाती है। मोमबत्ती वाली भीड़ से राजनीति को दूर कर सत्ता के खिलाफ खड़ना होगा ये खड़ना सत्ता के लिये लड़ाई का हिस्सा ना होकर समाज को झकझोर कर रख देने वाली ह्रदय विदारक घटनाओं पर लगाम लगाने की मुहिम होनी चाहिए। 

ये सब मैं नही लिख रहा ये सब मेरी कलम दिल मे आते भावों को, चिंताओं का चिंतन करते हुये लिखती जा रही है। मैं इस चिंता मे भी डूबा हूं कि कैसे मेरा हरियाणा असुरक्षित हो गया? 
इस चिंता मे डूबता-डूबता मैं सरकार को भी सवालों के घेरे मे ले लेता हूं और मैं विपक्ष मे बैठे कुछ सत्ता से बेरोजगार हो चुके नेताओं को भी घेरे मे लेने से नही चुकता। हरियाणा मे हर कोई सुरक्षित माहौल मे जी रहा था लेकिन कुछ सालों से हरियाणा मे बदलाव आया ये बदलाव सिर्फ राजनीतिक तौर पर ही नही ब्लकि हरियाणा के मशहूर भाईचारे की टूट के तौर पर भी आया और बहन-बेटियों की सुरक्षा के बदले माहौल के तौर पर भी आया।

हरियाणा की सत्ता पर काबिज होते ही सत्ताधारी पार्टी ने एक नारा लगाया था। ये नारा याद दिलाना इस लिये भी जरूरी हो जाता है क्योंकि प्रधानमंत्री जी ने मंच से इस नारे को लगाया था ये नारा था "बेटी बचाओ, बेटी पढाओ" इस नारे के लगते ही हरियाणा के हर मां-बाप मे एक सुरक्षा की दृष्टि से भी देखा गया था। इस नारे के लगाने के बाद कुछ आंकडे पेश किये गये थे कि हरियाणा मे बेटियों की जन्म दर के अनुपात मे वृध्दि हुई है ये वृध्दि सिर्फ सरकारी आंकडो मे थी या फिर हकीकत मे थी। सरकार ने ये नारा लगाते हुये कन्या भ्रूण हत्या पर लगाम लगाने की पुरजोर प्रयास किया और बेटियों की शिक्षा का भी पुरजोर प्रयास किया मगर सरकार भूल गई कि बेटियों को सिर्फ भूर्ण मे ही सुरक्षा की जरूरत नही ब्लकि बेटियों को असभ्य होते समाजिक ताने-बाने से कैसे सुरक्षित रखा जाये?

सरकार को अपने उस नारे को ध्यान मे रखते हुये बेटियों को सुरक्षा मुहैया करवानी होगी। नही एक जनसैलाब सत्ता के खिलाफ उमड पडेगा, उस जनसैलाब मे विपक्ष भी अपने राजनीतिक हाथों को धोयेगा और सत्ता पक्ष को चिल्लाना पडेगा इन मुद्दों पर सत्ता को ना घेरा जाये। 

सत्ता का घेराव इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ-साथ कुछ अन्य गैर-राजनीतिक संगठन भी कर रहे हैं जो दर्शाता है ये मुद्दा अब राजनीतिक दलों के लिये सिर्फ मुद्दा नही रहा एक ज्वलनशील हो समाजिक पृष्ठभूमि को ज्वलन कर गया है।

सत्ता को बेटियों को सुरक्षा मुहैया करवा एक सुरक्षित माहौल की स्थापना कर जनसैलाब को अहसास दिलाना चाहिये कि सत्ता भी अब चिंतित है आम जन के लिये, सत्ता को भी अहसास हुआ है सुरक्षा का।

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