Friday 5 January 2018

अन्ना जी कहीं खोये हुये हैं, मुझे लगता है मेरे अन्ना सोये हुये हैं

5 अप्रैल 2011 मे India Against Corruption आंदोलन की शुरुआत हुई। इस आंदोलन मे समाज सेवी कहे जाने वाले अन्ना हजारे भूख हड़ताल पर बैठे थे। ये आंदोलन धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। इस आंदोलन का मुख्य मकसद भारतीय राजनीति की रगों मे जम चुके भ्रष्टाचार रूपी रक्त को राजनीति से बाहर निकालकर राजनीति को नये भ्रष्टाचाररोधी रक्त प्रवाहित करना। वो सत्ता वाला दौर उस संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन मे प्रधानमंत्री डा• मनमोहन सिंह के पीछे चल रहा था। उस दौर मे भारतीय राजनीति मे भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे। मनमोहन सिंह भी हर रोज लग रहे आरोपों से थके-थके से नजर आ रहे थे। लोकसभा-राज्यसभा मे मनमोहन सिंह घिर से जाते थे। हालांकि उन आरोपों मे कोई सच्चाई थी या नही ये अब तक सामने नही आ पाया क्योंकि 2जी घोटाले मे कुछ दिन पहले ही ए राजा और कणिमोझी व अन्य बरी हो चुकी हैं। लेकिन लग रहे आरोपों के दौरान जनता सच्चाई से दूर होती है।



अब बात मुद्दे की करते हैं हम फिर से India Against Corruption के शुरू हुये आंदोलन की तरफ चलते हैं। ये आंदोलन अन्ना के संग आ खड़ा हुआ। ये आंदोलन इसलिये कह रहा हूं क्योंकि सारा देश अन्ना-अन्ना चिल्लाने लग गया था अब अन्ना की भीड़ हो गई थी और उस भीड़ को भ्रष्टाचार से बचाने वाले अन्ना थे। भ्रष्टाचार को खत्म करने की कसम अन्ना उठा चुके थे कि अब भ्रष्टाचार नही होगा नही तो फिर ये सत्ता नही होगी। पूरा देश अन्ना का लोकपाल मांगने लग गया था। मनमोहन सिंह की सत्ता हिल चुकी थी। एक तरफ भ्रष्टाचार के लगते आरोप और दूसरी तरफ सत्ता की नींव को जर्जर करता ये आंदोलन।

मैं उन दिनों सत्ताधारी दल के साथ खड़ा था लेकिन जब ये आंदोलन शुरू हुआ तो मैं सत्ता के लोभ को त्याग कर बिना पार्टी छोड़े अन्ना की उस भ्रष्टाचार विरोधी लहर के संग निकल पड़ा था उस वक्त उम्मीद जगी थी कि शायद ये अन्ना ही इस देश का बेड़ा पार लगायेगा ये अन्ना ही देश को जनलोकपाल बिल पारित करवाकर एक मजबूत भ्रष्टाचाररोधी तंत्र प्रदान करवायेगा। उन दिनों मैं कॉलेज मे कक्षा लगवा रहा था अचानक ही कॉलेज मे गुंडा टाईप लड़को ने अन्ना के नाम पर हड़ताल करदी और सभी कक्षाएं खाली करवाने लग गये। फिर पूरा कॉलेज पलभर मे खाली हो गया एक हजूम सा सड़को पर निकल पड़ा वो हजूम घर की राह पकड़ने वाले छात्र-छात्राओं का भी था और उस वक्त अन्ना के सिपाही बने कुछ हाथों मे भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने वाले युवा वर्ग की भ्रष्टाचारविरोधी रक्तधारा का भी था। ये भ्रष्टाचार विरोधी रक्तधारा मेरे शहर के चौंक की तरफ प्रवाहित हो रही थी क्योंकि चौंक पर उस वक्त भूखहड़ताल वाले बैनर लगे थे सब उसकी तरफ बढ़ रहे थे। ये वो दौर था जिस दौर ने सत्ता विरोधी माहौल खड़ा कर दिया था।

अन्ना के आंदोलन के वक्त कुछ राजनेता पनप रहे थे वो राजनेता अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी व अन्य आंदोलनकारी थे। उस वक्त जनलोकपाल बिल के लिये मरमिटने वाले आज उस लोकपाल को भूले बैठे हैं। मेरे अन्ना हजारे भी गुमसुम से हो गये हैं कहीं खो गये हैं। मैं अक्सर टीवी पर न्यूज चैनलो पर देखता रहता हूं शायद अन्ना नजर आ जायें और वही जज्बा जगा जायें कि अब जनलोकपाल पारित होगा। अब तो अन्ना के उसी साथी की सरकार है जिसने अन्ना को मोहरा बना देश की सत्ता मे अपनी पकड़ बनाई है। मेरी आंखे तरस गई हैं अन्ना जी रिमोट के बटन दबाते ही अगले वाले चैनल मे नजर आ जायें। मैं रिमोट के बटन को दबाता-दबाता आगे बढ़ता हूं मेरे अन्ना की तलाश मे मगर मैं आगे बढ़ता-बढ़ता खबरी चैनलो से आगे निकल जाते हुये संगीतीय चैनलो की तरफ बढ़ जाता हूं मगर मेरी उम्मीद फिर भी नही टूटती मेरे मन मे ये रहता है शायद अन्ना संगीतीय चैनल पर कहीं नाचते नजर आ जायें और मुझसे कहें ये लोकपाल बिल पारित होने का जश्न मना रहा हूं इसीलिये संगीतीय चैनल पर आ रहा हूं। मगर अफसोस मैं संगीतीय चैनलो पर से भी आगे बढ़ जाता हुआ फिल्मों वाले चैनलो की तरफ बढ़ जाता हूं कि शायद अन्ना जी किसी फिल्म मे आ जायें और मुझसे कहें जनलोकपाल बिल पारित हो गया है अब अन्ना फिल्म मे फिल्माया गया है। लेकिन अफसोस इधर भी बरकरार रहता है ये लेखक खुद के हाथों को रिमोट छोड़ने को कहता है।

ऊपरलिखित कहानी का लेखक मैं नही सारा देश है जो आज भी अन्ना को ढूंढ रहा है, उसी अन्ना को जो अन्ना लोकपाल चाहता था, जो अन्ना कांग्रेस पर दबाव बनाता, जो अन्ना हम सबको देशभक्ति की बातें सिखाता था।

आज अन्ना कहीं खोये हुये हैं। कांग्रेस ने लोकपाल बिल पास कर अन्ना का अनशन तुड़वाया था मगर आज तक मोदीसरकार ने लोकपाल की नियुक्ति नही की लेकिन अन्ना हजारे गुमसुम हुये सोये पड़े हैं, अब उनको लोकपाल याद नही, अब लोकपाल नियुक्ति के लिये कोई आंदोलन नही, कुछ गड़बड़ तो जरूर है या तो अन्ना बीजेपी वाला था या अन्ना देशवासियों के विश्वास-भरोसे का कत्ल करने वाला था।
इसीलिये अब शक सा होता है वो लड़ाई बीजेपी के लिये तो नही थी कहीं, शक सा बुलंद हो रहा है वो देश के विश्वास के साथ धोखा तो नही था, वो सत्ताधारी दल को उखाड़ बीजेपी को सत्ता सौंपने का मौका तो नही था, शक जायज भी है अन्ना का आंदोलन राजनीति के हाथों मे खेला हुआ नाजायज तो नही था।

"अन्ना जी कहीं खोये हुये हैं, मुझे लगता है मेरे अन्ना सोये हुये हैं, उनको नींद से जगाना होगा, मोदीराज मे सीएजी रिपोर्ट हो गई आधारहीन और ना बना लोकपाल ये सब मेरे अन्ना को बताना होगा, छिन गई विरोध-प्रदर्शन करने की वो जगह जंतर-मंतर, मेरे अन्ना को ढूंढ़ लाओ वो पता नही किधर हो गये हो छू-मंतर, किसान आंदोलन करने की वो कह रहे हैं लोकपाल को भूल शायद वो मोदी की सत्ता से भय खा रहे हैं, अन्ना मत ड़रो सत्ता से मत धोखा दो देश को, आओ लोकपाल की लड़ाई शुरू करें, मार एक खराटा नींद तोड़कर सुबह नई शुरू करें, फिर से खड़ा होगा देश संग तुम्हारे अगर पीठ मे जो घोंपा था खंजर वो निकालकर सत्ताधारी दल पर लोकपाल के लिये वार करें"

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