Friday 23 June 2017

राष्ट्रपति चुनाव या बिहार की राजनीति पर प्रतिघात?

नमस्कार दोस्तो, आज आप लोगों के बीच हूं नये ब्लॉग के साथ और दिल मे उभरे नये विचारों के साथ।

दोस्तो, आप सभी को पता है कि इस वक्त राष्ट्रपति चुनाव का दौर चल रहा है और इस बार राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए और यूपीए के बीच कांटे की टक्कर है लेकिन आप सभी जानते भी हो कि राष्ट्रपति चुनाव मे सत्ताधारी दल दूसरे दलों को काबू में कर ही लेते हैं, उदाहरण के लिये बताना चाहूंगा कि कुछ दिनों पहले दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया पर सीबीआई का छापा और उसके बाद आम आदमी पार्टी का राष्ट्रपति चुनाव के बहिष्कार की खबरों का आना।


आप पार्टी बीजेपी को कोसती आई है और इस हालात में बीजेपी को समर्थन सीधा तौर पर अपनी विचारधारा को अपमानित करने जैसा है इसीलिये दूसरे रास्ते से राष्ट्रपति चुनाव मे वोटिंग नही करने का निर्णय लेना सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा पहुंचाने जैसा ही है क्यूंकि जिस तरह से कांटे की टक्कर है उस तरह से किसी दल का वोटिंग मे हिस्सा ना लेना सत्ताधारी दल को को मजबूती देना ही है।


दोस्तो, अब हम दिल्ली से होते हुये बिहार की राजनीति की तरफ बढते हैं, बिहार मे स्थिर सरकार है लेकिन बिहार मे आप सभी को पता ही है कि वहां राष्ट्रीय जनता दल  (राजद) के अधिक विधायक जीते थे लेकिन फिर भी राजद ने नीतिश को मुख्यमन्त्री बनाया। मेरा व्यक्तिगत मानना भी यही है कि नीतिश बिहार का मजबूत चेहरा हैं और नीतिश ने बिहार मे काम करके भी दिखाया है दिखा भी रहे हैं।
लेकिन मैं नीतिश के बयान "बिहार की महिला को हारने के लिये उम्मीदवार बनाया है" में एक अलग राजनीति रूपरेखा को महसूस कर रहा हूं, नीतिश खुद की रेखा को एनडीए की तरफ खींच रहे हैं। ये इसीलिये भी हो सकता है कि अगर सरकार के खिलाफ माहौल बने तो उसको राजद के सर-मत्थे मढ़ बीजेपी की तरफ कदम बढाकर फिर से सत्ता मे आने की तैयारी हो।ऐसा नीतिश पहली बार नही कर रहे, पिछले राष्ट्रपति चुनाव में नीतिश ने यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को सर्मथन देकर अपने लिये एक विकल्प तैयार कर लिया था कि अगर उलट परस्थिति हुई तो उधर के पाले में छलांग लगाकर सत्ता को लपका जा सके। नीतिश कुमार एक सुलझे हुये शख्स हैं लेकिन राजनीति नीतियां मायने जरूर रखती हैं पर इतना भी मायने नही रखती कि जो नीतियां सही चल रही हों निभ रही हों उन नीतियों को तोडकर नई नितियों की तरफ बढा जाये इधर नीतियों से मेरा साफ-स्पष्ट मतलब इस वक्त सत्ता मे भागीदार राजद-कांग्रेस को ठेंगा दिखाकर एनडीए को समर्थन करने से है।

 
रामनाथ कोविंद के उम्मीदवार बनते ही नीतिश कुमार एनडीए की तरफ यूं हो लिये जैसे रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार नीतिश कुमार से सलाह-मशविरा करके ही बनाया गया हो और यही कारण हो सकता है जो नीतिश कुमार को मजबूर कर रहा है एनडीए की तरफ खडे रहने को प्रतिबद्ध कर रहा हो।


मैं राष्ट्रीय मीडिया पर खबर सुन रहा था कि 4जुलाई को जेडीयू की अहम बैठक होगी और ये अहम बैठक कहीं बिहार की सरकार को तोडकर बीजेपी की तरफ जाकर फिर से सरकार को जोडना तो नही है, ये इस उभर रहे शक को इसीलिये भी मजबूत करता है क्यूंकि नीतिश कुमार पहले अक्सर नरेंद्र मोदी को कोसा करते थे लेकिन फिर धीरे-धीरे अब कोसना बंद करदिया, इधर कोसने से हमारा तात्पर्य निजी टिप्पणी से नही ब्लकि राजनीतिक तौर पर विरोधाभासों के तहत तीखा टिप्पणी करने से है।


अगर नीतिश कुमार ऐसे ही सत्ता की रेखा को एक तरफा खींचते चले गये तो मुझे या किसी अन्य राजनीतिक विश्लेषक को कहने से संकोच नही होगा कि बिहार में सत्ता खतरे मे है और बिहार नई सरकार की तरफ बढ रहा है क्यूंकि जेडीयू और बीजेपी दोनों मिलाकर बहुमत के आंकडे को पार कर रहे हैं।


लेकिन अगर बिहार मे सरकार टूटती है तो ये नीतिश की राजनीतिक भूल होगी और आने वाले वक्त मे बिहार की राजनीति मे नीतिश की छवि को गहरा आघात पहुंचेगा।


इसी के साथ विदा लेता हूं दोस्तों, मेरा लेख आप सबको कैसा लगा जरूर बताया कीजिये क्यूंकि आपके बताने से मेरा हौंसला बढता है और अगर कुछ कमी होगी तो उस त्रुटि को दूर करने की कोशिश करूंगा, क्यूंकि जब आप कमी पता बताओगे तो उसे दूर करूंगा दोस्तो।


4 comments:

  1. #भाजपा के #अन्धभक्तो से #दो_सवाल..

    ज़रा नॉलेज रखा करो - फेंकू जुमलेबाज़ पार्टी में तो बिना डिग्री के अनपढ़ भरे हुए है..अब ये #भीम_जनता_पार्टी( BJP)बन रही है।
    #BJP के अनपढ़ो के भरोसे,आईटी सेल अपनी झूठी फर्जीकल अक्ल का प्रदर्शन मत करो।
    कल से ही श्रीमती #मीरा_कुमार के #पति के #जाति को लेकर, सोशल मीडिया पर चर्चा हो रही है....

    जिन किसी को उनके पति #मंजुल_कुमार_शास्त्री की जाति जानना है- उन्हें बता दूं मंजुल कुमार; #कुशवाहा(कोइरी) यानि #पिछड़ी_जाति से आते हैं न कि ब्राह्मण। यही यूपी के #उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की भी जाति है। मंजुल कुमार की माता सुमित्रा देवी, बिहार सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। शास्त्री नाम से जुड़ा होने के कारण जो लोग मंजुल कुमार शास्त्री को ब्राह्मण समझ रहे हैं।

    भक्तों आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि बिहार के पूर्व #मुख्यमंत्री #भोला_पासवान_शास्त्री के नाम से भी शास्त्री जुड़ा था मगर वो #एक_दलित जाति से आते थे। पूर्व #प्रधानमंत्री स्वर्गीय #लाल_बहादुर_शास्त्री की जाति #कायस्थ थी, ब्राह्मण नहीं। हो सकता है अब मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के बाद राष्ट्रपति भी शास्त्री हो - जो कि गैर-ब्राह्मण हो।

    चलिये ये तो हो गया सच्चाई.. लेकिन (1) क्या मीरा कुमार ब्राह्मण होती तो उन्हें राष्ट्रपति बनने का हक नही है ?
    (2) क्या ब्राह्मण होना अपराध है आरएसएस मोदिसरकार में ?
    इस बार सबसे योग्य राष्ट्रपति उम्मीदवार श्रीमती मीरा कुमार ही जीतेगी।
    (इनको दलित + पिछड़ा + ब्राह्मण + महिला + बिहार का पूरा वोट मिलेगा।)
    #MeiraKumarForPresident

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  2. शानदार आंकलन बेहतर शुभकामनाये राहुल शाबाश
    राहुल गाँधी की निगाहें गुजरात पर जा कर टिक गयी हैं और अब वाकायदा योजना बन रही हैं .
    https://www.azadmanoj.com/2017/07/gujrat-forte.html

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