Sunday 23 July 2017

एक कहानी जमींदार की

दोस्तो, आज नये लेख के साथ आया हूं आज का लेख  राजनीति से हटकर जमींदार मतलब किसान की समस्याओं व कर्जे से जूझती जिन्दगी को बयां करेगा।


किसान क्या है? किसान है वो शख्स जो पूरे देश का पेट पालता है लेकिन पूरे देश का पेट पालते हुये भी वो खुद के पेट को पाल तो लेता है लेकिन वो उन सुख-सुविधायों से दूर रहता है जिनका वो हकदार होता है।
किसान 1ऐकड वाला भी है किसान 20ऐकड वाला भी लेकिन हालत सबकी एक सी है बस फर्क इतना है कि 20ऐकड वाले को थोडा हौंसला होता है खर्च चलता रहता है लेकिन 1ऐकड वाला किसान जब कर्ज मे फंसता है फंसता ही चला जाता है लेकिन किसान तबके की खास यही बात है कि वो कर्ज चुकाना चाहता है, लेकिन इस चुकाने की प्रतिबद्धता के कारण खुद को हीन समझते हुये मानसिक रूप से हीन होता हुआ मौत की तरफ बढता चला जाता है।


किसान की कहानी को बयां करने के लिये इस लेख को आगे एक कहानी मे पिरोता हुआ अन्य आपसी समस्याओं को भी उठाऊंगा।



कहानी के शुरूआती दौर मे, जमींदार के घर खुशियों का माहौल है जमींदार के बेटे-बेटी की शादी है पूरा घर खुशियों मे झूम रहा होता है, लेकिन वो जमींदार चिन्ता मे डूबा होता है कैसे जुटाऊंगा पैसे, कैसे करूंगा मेहमानों की आगवनी और कैसे दूंगा बेटी को दहेज इसी सोच को मन मे लेता हुआ निकलता है घर से और पहुंच जाता है बैंक की चौखट पर वहां से कागजी कार्रवाई करवा वो अपनी 5ऐकड पर कर्ज लेता है पर कर्ज मिला उसको अढाई  लाख, वो फिर से चिंताग्रस्त हो जाता है महसूस करता है कि इस महंगाई के जमाने मे अढाई लाख मे तो मेहमानों की मेहमानवाजी भी नही हो पायेगी।


यही चिंता उसको घेरे हुये साहुकार की तरफ ले चलती है, साहुकार के दरवाजे पर जाकर वो गुहार लगाता है और अपने अच्छे बनाये व्यवहार पर 5लाख ले आता है, फिर साहुकार अपने 2% के ब्याज की सुई को शुरू कर देता है।
जमींदार लेकर पैसों को खुशी-खुशी घर की तरफ निकल पडता है और परिवार मे एक खुशी के माहौल मे सारी तैयारियां पूरी हो जाती है और तय दिन शादी भी हो जाती है।
कुछ दिन खुशी मे बीतने के बाद फिर से किसान को एक चिंता सताये रहती है साहुकार और बैंक के ब्याज की घूम रही सुई की, ये सुई किसान के मन मे चुभते हुये उसके दिल को चीरकर मानसिक रूप से हीन कर देती है और किसान अपना कदम मौत की तरफ  बढाता है कुछ दिनों पहले का खुशियों भरा माहौल मातम मे बदल जाता है, लेकिन वो किसान खुद को छुटकारा दिलाने से पहले भूल जाता है वो अपना सबकुछ अपने बेटे के लिये विरासत मे छोड जाता है फिर वही माहौल जो वो खुद झेल रहा होता है, वो ही मानसिक प्रताडना अपने बेटे को सौंप जाता जिस प्रताडना से गुजरता हुआ वो गुजर जाता है।


फिर से कहानी वही बीतती है जमींदार पर, कर्ज से निकलता है तो कभी सेहत मार लेती है, कभी घर बनवाई, कभी ब्याह-सगाई और जब इन सबके फेर से निकल भी जाये तो अंत मे सरकारें मार लेती हैं, चुनावों मे वादे होते हैं दुगुनों दाम देने के लेकिन मिलता है वही पुराना रेट बस 40-50रूपये की बढोतरी के साथ बस एक हल्की मुस्कान देने की कोशिश के साथ।
मगर सरकारें नही जानती कि 40-50रूपये के साथ हल्की मुस्कान जरूर मिल जायेगी मगर जो दफन हैं सीने मे दर्द-ऐ-कर्ज वो नही मिट पायेगा।


"किसान से खरीदने के वक्त रेट मिलता है 2-4 का फिर उसी सब्जी या फसल का रेट 40के पार पहुंच जाता है, किसान यहीं मार खाता है यहीं तो किसान को रेट फसल का मार जाता है व्यापारी मोटा मुनाफा खाता है किसान तो व्यापारी का मजदूर बना रह जाता है"


किसान यूनियन बस कहने को है, मैं 90 के दशक मे पैदा हुये साथियों से पूछना चाहूंगा कि क्या कभी देखा है किसी ने अपनी जवानी मे किसान आंदोलन हुआ?
किसान आंदोलन होते हैं बस नाम मात्र के जो प्रधान होते हैं उनके वो मुख्यमंत्री से मिलते हैं और आंदोलन खत्म कर लेते हैं लेकिन किसानों के मसले वहीं के वहीं रह जाते हैं, किसान यूनियन के प्रधान बिना सुलझन के क्यूं आंदोलन खत्म करते हैं?


मैं हरियाणा से हूं हरियाणा मे किसान यूनियन एक नही है अलग-अलग किसान यूनियन और अलग-अलग प्रधान, अलग-अलग आंदोलन और अलग-अलग मेल मुख्यमंत्री से और आंदोलन खत्म?
हरियाणा की किसान यूनियनें एक क्यूं नही होती, वो किसानों की लडाई एक होकर क्यूं नही लडती, उनके प्रधानों मे बदलाव क्यूं नही होता?
क्यूं वो एक ही प्रधान के अधीन नहीं होती है?


किसान को अपनी किसान यूनियनों पर भी सवाल उठाना चाहिए और सारी किसान यूनियनों को एक होकर एक प्रधान बनाने की बात करनी चाहिए, क्यूंकि जब तक हम अलग-अलग बंटे रहेंगे तब तक सरकार की मार भी पडती रहेगी और साहुकार की भी।


"छोड लालच अब एक हो जाओ किसानों के मसीहों, क्यूं पडे हो चक्कर मे प्रधानी के, एक हो आवाज करो बुलंद उजडते किसान बचाओ जवानी के, फिर किधर करोगे प्रधानी जब नही बचेगी किसानी, सरकार को घेरो एक होकर, कर्ज माफ करवाओ किसानों का दिल से नेक होकर, करो आवाज बुलंद अपनी एक होकर"


मेरा दिल नही कर रहा था कि किसान यूनियन पर सवाल उठाऊं लेकिन जिस तरां से हरियाणा प्रदेश किसान यूनियन क्षेत्रों के आधार पर बंटी पडी है उससे सवाल उठाना बनता है क्यूंकि हम सब किसान है और हम सबको एक होकर सबकी आवाज उठानी चाहिए, जब हम एक आवाज में गूंजेंगे तो सरकार के कानों के पर्दों को चीरते हुये किसान की बुलंद आवाज अपने हकों को मरने नही देगी और अगर रहे यूं ही अलग-अलग तो फिर सरकार के पर्दों पर ये गुटबंदी कुछ असर करने नही देगी।


इन्हीं अंतिम शब्दों के साथ विदा लेता हूं, माफी चाहता हूं अगर अलग-अलग किसान यूनियनों के साथियों को ये सच्चाई कडवी लगी हो, इस सच्चाई को समझते हुये एक होकर आवाज बुलंद करो, एक किसान यूनियन बनाओ और एक प्रधान चुनावी प्रक्रिया के तहत और प्रदेशभर मे सभी किसान यूनियनें इकट्ठी होकर एक चुनावी प्रक्रिया तहत अपने अध्यक्ष का निश्चित कार्यकाल के लिये चुनाव करें और उस अध्यक्ष के निर्देश अनुसार चल किसान हितों की रक्षा करें।


इसी सुझाव के साथ इस लेख को खत्म करता हूं।


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