नमस्कार दोस्तो, आप लोगों के बीच मे नये लेख के साथ आया हूं, आज का लेख हरियाणा मे चल रही राजनीतिक उठा-पटक को देखते हुये 2019 मे हरियाणा की राजनीति के समीकरणों पर गौर करेंगे।
पिछले दिनों हरियाणा के दौरे पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आये थे और उन्होंने रोहतक के पाॅश सेक्टर मे एक दलित के घर खाना खाकर हरियाणा मे चुनावों की सुगबुगाहट का अंदेशा दिया था, क्यूंकि अमित शाह ने जिस अंदाज मे मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व मे चुनाव लडने की बात कही उससे अंदाजा लगा सकते हैं कि हरियाणा के चुनाव लोकसभा चुनाव के संग हो सकते हैं। क्यूंकि भाजपा मे कई ऐसे नेता 2014 मे भी थे जो मुख्यमंत्री चेहरा बनना चाहते थे जिनमे मुख्यत रामबिलास शर्मा, अनिल विज, ओपी धनखड व कैप्टन अभिमन्यु थे। 2019 मे मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व मे चुनाव लडने का ऐलान करते ही इन चेहरों का मुख्यमंत्री बनने का सपना टूट सा गया।
हरियाणा मे राजकुमार सैनी को तुरुप के इक्के की तरां हरियाणा की राजनीति को जाट-गैरजाट मे बांटने के लिये उपयोग किया गया। आप सभी को मालूम ही होगा कि हरियाणा का भाईचारा भरा माहौल पूरे भारत मे मशहूर था लेकिन पिछले कुछ सालों से हरियाणा ने जो कुछ झेला है वो बयां करना दर्द भरा है उसे बयां करना मुश्किल है किस तरह से जाट-गैरजाट मे बांट दिया गया लेकिन बीजेपी ने फिर भी अपने सांसद राजकुमार सैनी पर कोई कार्रवाई नही की और बीजेपी के बेलगाम लहरी सांसद आज भी जाटों के खिलाफ बोलने पर लगे हैं कभी जाटों के पूज्यनीय सर छोटूराम पर अशोभनीय व नीच टिप्पणी करते हैं उससे हरियाणा के माहौल को चिंगारी देना का जो प्रयास हुआ उसपर बीजेपी ने कोई कार्रवाई नही की।
हरियाणा मे बिगडे हालातों के बीच बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व मे चुनाव लडने की कहकर जता दिया है कि बीजेपी अगली बार के लिये भी गैर-जाट चेहरे पर दांव लगा दिया। वैसे जिस तरां से इनेलो 3चुनावों से सत्ता से दूर है और हरियाणा मे बीजेपी के गिरते ग्राफ से बीजेपी-इनेलो का गठबंधन लगभग तय लग रहा है, क्यूंकि सत्ता मे आना इनेलो के लिये भी बहुत जरूरी सा हो गया है अगर इनेलो 2019 चुकी तो फिर इनेलो को अपने अस्तित्व वाले इकलौते राज्य से भी बोरी-बिस्तर बांधना पड जायेगा। वैसे भी हरियाणा की हवाओं मे उड रहा है कि 2019 से पहले चुनावी हवा गर्म होते ही हवा के झोंके की आहट को समझ इनेलो के दिग्गज नेता हवा के झोंके की तरफ सरक सकते हैं। इनेलो के लिये अपना अस्तित्व बचाने के लिये गठबंधन मजबूरी भी हो चुका है और जरूरी भी।
एक बात से इंकार नही किया जा सकता कि अगर इनेलो अपने युवा सांसद दुष्यंत चौटाला के नाम को आगे रखकर चुनाव लडती है तो इनेलो के प्रचार को हवा मिल सकती है और इनेलो उस हवा मे बहकर तैर भी सकती है और चुनाव रूपी दरिया को पार कर सत्ता के किनारे पर पहुंच सकती है। लेकिन दुष्यंत चौटाला को इनेलो चेहरा बनायेगी ये बहुत मुश्किल लग रहा है क्यूंकि उनके सामने उनके चाचा अभय चौटाला चट्टान की तरां खडे हैं उनका भी सपना मुख्यमंत्री बनने का अभी वेटिंग मे ही है। इनेलो जनाधार से इंकार नही किया जा सकता इनेलो को चेहरे की जरूरत है वो चेहरा दुष्यंत चौटाला साबित हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर 2004 के विधानसभा चुनावों को आपके सामने रखता हूं, उस वक्त हरियाणा मे ओपी चौटाला सत्ता मे थे लेकिन उनका चेहरा उस वक्त जनता की आंखो से उतर गया था और जनता उस वक्त दो चेहरे देख रही थी वो चेहरे थे चौधरी भजन लाल और उस वक्त के युवा नेता के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री ओपी चौटाला के सुपुत्र अजय चौटाला। उस वक्त अजय चौटाला मे ताऊ देवीलाल की छवि को देखा जा रहा था लेकिन ओपी चौटाला खुद मुख्यमंत्री बनने के लिये लडे और ऐंटी-इन-कंबेसी के चक्रव्यूह को तोड नही पाये। ऐंटी-इन-कंबेसी के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिये उस वक्त अजय चौटाला का चेहरा जरूरी था। उस वक्त कांग्रेस को 67सीटें मिली थी और इनेलो को सिर्फ 9सीटें लेकिन गौर करने वाली बात ये थी कि ज्यादातर सीटों पर इनेलो सिर्फ 200 से लेकर 3000 तक के अंतर पर हारी थी, उस अंतर को पाटने का काम उस वक्त ताऊ देवीलाल की छवि के रूप मे उभर रहे अजय चौटाला कर सकते थे।
लेकिन आज की हकीकत यही बयां करती है कि इनेलो के लिये चुनाव आसान नही होने वाले। दूसरी तरफ हरियाणा मे कांग्रेस के बढ रहे जनाधार ने बीजेपी-इनेलो की नींद उडाई हुई है। कांग्रेस के सभी नेता बेशक अलग-अलग रैलियां व राजनीतिक समारोह कर रहे हों लेकिन एक भीड हर नेता के कार्यक्रम मे अपने आप खींची चली आती है, और ये भीड के प्रति बढ रहे खिंचाव के कारण हरियाणा की जनता 2019 मे हरियाणा मे कांग्रेस सरकार को महसूस करने लग गई है, हरियाणा की जनता ने बीजेपी सरकार और कांग्रेस सरकार मे अंतर करके देख लिया है। हरियाणा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डा• अशोक तंवर पिछले 3साल से ही चुनावी रंग मे रंगे नजर आ रहे हैं वो हर रोज 200-300 किलोमीटर का चक्कर लगा रहे हैं और जनता के बीच कांग्रेस की पैठ को फिर से स्थापित करने मे लगे हैं।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भी चुनावी मोड मे ऐक्टिव हो चुके हैं वो भी अपने समर्थकों संग कार्यक्रमों व रैलियों मे शिरकत कर रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला भी धीरे-धीरे अपने मुख्यमंत्री बनने के सपने संग हरियाणा मे अपनी पैठ बनाने लगे हैं और हरियाणा के विभिन्न कोनों मे किसान-मजदूर-व्यापारी रैलियों का श्रृंखलाबध्द तरीके से आयोजन कर रहे हैं लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि रणदीप सुरजेवाला भी भीड का जमावडा जुटाने मे कामयाब रहे हैं और अपनी जनता के बीच पैठ को सुनिश्चित कर कांग्रेस हाईकमान को संदेशा भेज रहे हैं कि हम भी दौड मे हैं।
कुमारी शैलजा भी अपने समर्थकों संग कार्यक्रमों मे शिरकत कर रही हैं, पिछले महीने उनका पंचकुला व करनाल मे सफल कार्यक्रम आयोजन हुआ।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भी चुनावी मोड मे ऐक्टिव हो चुके हैं वो भी अपने समर्थकों संग कार्यक्रमों व रैलियों मे शिरकत कर रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला भी धीरे-धीरे अपने मुख्यमंत्री बनने के सपने संग हरियाणा मे अपनी पैठ बनाने लगे हैं और हरियाणा के विभिन्न कोनों मे किसान-मजदूर-व्यापारी रैलियों का श्रृंखलाबध्द तरीके से आयोजन कर रहे हैं लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि रणदीप सुरजेवाला भी भीड का जमावडा जुटाने मे कामयाब रहे हैं और अपनी जनता के बीच पैठ को सुनिश्चित कर कांग्रेस हाईकमान को संदेशा भेज रहे हैं कि हम भी दौड मे हैं।
कुमारी शैलजा भी अपने समर्थकों संग कार्यक्रमों मे शिरकत कर रही हैं, पिछले महीने उनका पंचकुला व करनाल मे सफल कार्यक्रम आयोजन हुआ।
लेकिन कांग्रेस मे वापिसी करने वाले कुलदीप बिश्नोई अभी सिर्फ अपने लोकसभा हल्के तक सीमित हैं, वो ये आपसी उठा-पटक की तरफ चुपचाप बैठे देख रहे हैं, लेकिन इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि कुलदीप बिश्नोई की वापिसी कांग्रेस के लिये जीताऊ फैक्टर साबित हो सकती है, कुलदीप बिश्नोई भी एक पूरे प्रदेश मे पैठ वाले नेता हैं बेशक कहीं-कहीं कुछ कम पैठ हो। लेकिन इस बार कुलदीप बिश्नोई मुख्यमंत्री चेहरे की दौड से बाहर ही हैं क्यूंकि उनकी अभी वापिसी हुई है और कांग्रेस उनका दांव लगाकर पुराने नेताओं को नाराज नही कर सकती। शायद यही कारण अभी कुलदीप बिश्नोई को चुप रखे हुये है।
हरियाणा मे वर्तमान हालात अभी एक तरफा कांग्रेस के पक्ष मे बने हुये हैं लेकिन इन हालातों को वोट मे बदलने के लिये कांग्रेस हाईकमान के लिये चुनौती भी रहेगी क्यूंकि सभी नेता अलग-अलग कार्यक्रम व आंदोलन चलाये हुये हैं। अगर नेता एकजुट हो जाते हैं तो ये हालात एक तरफा ही कांग्रेस के पक्ष मे बने रहेंगे बस कांग्रेस के लिये चिंता की लकीर तब खिंच सकती है अगर भाजपा-इनेलो गठबंधन कर चुनाव मे उतरते हैं, बन रहे हालातों को देखकर लग रहा है कि भाजपा-इनेलो गठबंधन मे ही चुनावी मैदान मे उतरेंगे। वैसे इनेलो और बीजेपी का गठबंधन इतना आसान भी नही रहेगा क्यूंकि 45-45 सीट पर बात बननी बहुत मुश्किल है कोई भी पार्टी झुकना पसंद नही कर सकती। बाकि आप लोग भली-भांति परिचित ही हो कि राजनीति मे कभी भी कुछ भी हो सकता है।
एक छोटी सी कोशिश की है हरियाणा के बन रहे राजनीति समीकरणों को स्वतंत्र रूप से बयान करने की, विदा लेता हूं साथियो, फिर मिलूंगा एक नये लेख के साथ।
शानदार लेख वर्तमान में कांग्रेस की तैयारी
ReplyDeletehttps://www.azadmanoj.com/2017/08/indication-killing-plan-of-bjp.html
It won't be a cake walk for congress to make a comeback.
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