Monday 31 July 2017

2019 की तरफ बढ रही सभी राजनीतिक पार्टीयों की तैयारीयों का उल्लेख करता लेख

नमस्कार दोस्तो, आज एक नये लेख के साथ आया हूं, आज का लेख 2019 के आम चुनाव के लिये सभी पार्टीयों की चल रही तैयारीयों का उल्लेख करते हुये।


दोस्तो, आप सबको मालूम है कि जैसे-जैसे 2017 आगे बढ रहा है वैसे आपको हर पार्टी की तरफ से 2019 की ओर बढ रहे कदमों की आहट का अहसास हो रहा होगा।


कांग्रेस भी 2019 के लिये तैयारी स्वरूप सभी दलों को एकजुट करने मे लगी है और हर दल को साथ लेकर चलते हुये बीजेपी के सामने एक मजबूत चुनौती खडी करने मे लगी है और उधर बीजेपी अपने कदम विपक्षमुक्त भारत का निर्माण करने की ओर बढ रही है और इसी के तहत गुजरात मे कांग्रेसी विधायकों की खरीद-फरोख्त करने मे जुटी है ताकि कांग्रेस को बहुत बडी राजनीतिक क्षति दी जा सके। अमितशाह उत्तरप्रदेश की तरफ बढ रहे हैं तो वहां पर भी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के विधानपरिषद के सदस्यों को तोड लेते हैं क्यूंकि भाजपा 2019 से पहले उपचुनाव नही चाहती और इन 3सीट से वो अपने मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री व अन्य मंत्रीयों को विधानपरिषद मे भेज विधानसभा के उपचुनाव से बचा सके और एक खबर उडती हुई टीवी पर वायरल भी हो रही है कि बीजेपी यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री पद से हटाकर केन्द्र मे मंत्रीपद दिया जा सकता है और ये कदम भी 2019 से पहले उपचुनाव से बचने की तैयारी का ही हिस्सा है क्यूंकि इस वक्त उत्तरप्रदेश मे समीकरण बदल चुके हैं 4-5महीने मे ही यूपी मे बढ रहे अपराध व पुलिस तक पर हो रहे हमले के कारण यूपी मे बदलाव लाने वाली बात विफल होती नजर आ रही है और यूपी मे बदलते समीकरणों मे कांग्रेस, सपा व बसपा की एकजुटता भी है, बीजेपी ने बदलते समीकरणों को देखते हुये अंदाजा लगा लिया है कि अगर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य अपनी फूलपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा देते हैं तो उधर से बसपा प्रमुख मायावती संयुक्त उम्मीदवार हो सकती है और उस उपचुनाव मे बीजेपी फजीहत से बचना चाहती है।


अब यूपी के बाद बिहार की तरफ निकलते हैं, 2019 की तैयारीयों के मद्देनजर ही बीजेपी ने बिहार की राजनीति मे एक तरह से नीतिश से गठबंधनपलट करवा दिया, बीजेपी को मैं इसलिये इस गठबंधन की टूट का कारण मान रहा हूं क्यूंकि मोदी जी पिछले आम चुनावों मे सीबीआई को केन्द्र सरकार की तोता-मैना कहते आये थे और उन्होंने ने ये बात कहते हुये ही जगजाहिर कर दिया था कि इस तोता-मैना का कैसे उपयोग करना है। जिस तरां से राजद की तरफ से नीतिश के खिलाफ 302 की एफआईआर की काॅपी पेश की गई उससे दिल मे उभर रहे शक को मजबूती मिलती है कि कहीं मोदी जी ने तोता-मैना का उपयोग करते हुये ही इस गठबंधन की टूट मुकम्मल की हो। बिहार विधानसभा मे बेशक नितिश जी ने बहुमत साबित कर दिया हो लेकिन आगे राह उन्होंने कठिन करली है क्यूंकि बिहार उनको जो जीत मिल थी वो बीजेपी को विरोध के तराजू मे तोलते हुये मिली थी और उस विरोध के तराजू मे बिहार की जनता ने महागठबंधन के पासे को भारी साबित किया था लेकिन नितिश उस बहुमत के उलट हो लिये हैं लेकिन आगे ये देखना बाकी है कि बिहार की जनता उनके इस दांव को गलत साबित करेगी या सही।
नरेंद्र मोदी जी ने दांव तो खेल दिया है नितिश पर लेकिन मोदी के एनडीए गठबंधन के छोटे साथीयों मे विरोधीस्वर मुखर हो रहे हैं, उदाहरणस्वरूप जीतनराम मांझी का रामविलास पासवान के भाई को मंत्री बनाये जाने पर रामविलास को सत्तालोभी बताना है।



बिहार के बाद हम ममता के मजबूत किले पश्चिम बंगाल की तरफ बढते हैं, 2019 के चुनाव मे मुख्य भूमिका निभाने वाले किले के रूप मे पश्चिम बंगाल स्थापित हो सकता है क्यूंकि पश्चिम बंगाल मे 42लोकसभा सीटें आती हैं और 42लोकसभा सीटें बहुमत के कांटे को इधर-उधर लटका सकती है। पश्चिम बंगाल मे 2019 के लिये ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और राहुल गांधी की कांग्रेस मे गठबंधन बनता नजर आ ही रहा है क्यूंकि ममता केंद्र सरकार के उनके प्रति बन रहे रवैया से वाकिफ हो चुकी हैं। गोरखालैंड मुक्ति मोर्चा के बैनर तले जो बंगाल मे आंदोलन करवा ममता के किले को सेंधने की जो कोशिश बंगाल मे हो रही है उसमे ममता बनर्जी को बीजेपी के होने की बू आ रही है क्यूंकि उन दंगो मे जिस तरां से बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं ने गुजरात दंगो वाली तस्वीर को बंगाल की बताकर हिंदू विरोधी साबित करने की कोशिश कर एक अलग ही स्तरहीन राजनीति दिखाने का प्रयास हुआ था वो ममता बनर्जी के शक को ठोस कर देता है। बंगाल मे एक मुश्किल लेफ्ट को लेकर है अब देखना होगा कि कांग्रेस-ममता के साथ आने के बाद क्या वो इस गठबंधन को महा बनाने मे सहयोग करेंगे या फिर बीजेपी के साथ जायेंगे, राजनीति मे कुछ भी मुमकिन है क्यूंकि जिस तरां से नीतिश कुमार जी कहते थे कि "मिट्टी मे मिल जाऊंगा पर बीजेपी मे नही जाऊंगा" पर वो चले गये।
राजनीति मे सबकुछ मुमकिन है, इसीलिये किसी अचंभित करती राजनीतिक उठा-पटक से अचंभित ना होईयेगा।


2019 से पहले नरेंद्र मोदी जी के लिये गुजरात के अपने मजबूत किले को बचाने की चुनौती होगी, उसके लिये अमित शाह लगे हुये। कांग्रेस के द्वारा लगाये जा रहे प्रशासन, सत्ता बल, खरीद-फरोख्त के आरोपों से ज्ञात कर लेना चाहिए कि गुजरात के किले को बचाने के लिये हर तरह से प्रयास हो चुके हैं। ऐसा इसलिये भी है क्यूंकि गुजरात मे सिर्फ बीजेपी की जीत या हार नही होगी, गुजरात किले को बचाने की लडाई नरेंद्र मोदी के आत्म-सम्मान की लडाई होगी इसीलिये किले के माॅडल को देश के सामने रखते हुये ही मोदी केंद्र की सत्ता मे काबिज हुये थे।
गुजरात की लडाई कांग्रेस के लिये भी बहुत मुश्किल होने जा रही है क्यूंकि कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता शंकर सिंह वघेला को पार्टी से बाहर कर अपने लिये चुनौती को ज्यादा मजबूत कर दिया है, वैसे इस बार गुजरात के चुनाव मे पटेल समुदाय की भूमिका भी निर्णायक होने जा रही है और इस चुनाव मे उधर आम आदमी पार्टी ने भी गुजरात चुनाव लडने का ऐलान कर दिया है जिससे गुजरात चुनाव मे बीजेपी को ऐंटी-इन-कंबेसी मे होते हुये भी थोडी राहत मिल रही है।


2019 के आम चुनावों के बारे मे हर तरफ एक चर्चा सी उड रही है कि मोदीसरकार आमचुनावों को 2019 मे नही ब्लकि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ के चुनावों के साथ 2018 मे ही करवा सकती है। इसके पीछे मुख्य कारण बीजेपी को राज्यों मे हो रही कमजोरी को मोदीलहर की मजबूती मे ढकने की कोशिश है, बीजेपी मोदी चेहरे को ही प्रमुख रखकर चुनाव लडने वाली है, ऐसा स्वाभाविक ही है क्यूंकि बीजेपी का मोदीकार्ड अभी तक चल रहा है और इस कार्ड को वो आगे भी चलाते रहेंगे।


दोस्तो, अब देखते रहना होगा कि बीजेपी का मोदीकार्ड कब तक चलता है और कांग्रेस का राहुलकार्ड कब सफल हो पायेगा, वैसे अंत मे ये बात सबको माननी होगी कि 2019 या 2018 जब भी लोकसभा चुनाव करवाया जायेगा तब बीजेपी के लिये चुनौती पहले की तरां आसान नही होगी क्योंकि 2014 मे मैदान साफ था कांग्रेस पर आरोपों की बौछार लग रही थी, नेता टूटते जा रहे थे, और मोदी जी बस 60सालो की रट लगाये हुये कांग्रेस को कोसे जा रहे थे, अपनी बातों का बखान करते जा रहे थे लेकिन इस बार के चुनावों मे जनता के बीच जाकर पिछले 60साल के हिसाब को भूल अपने 60महीनों का हिसाब-किताब देना होगा और इस बार अलग रणनीति के साथ उतरना होगा, इस बार अपने पिछली दफा के काफी पासों को बदलना होगा व इस बार खुद को साबित करने की एक कडी चुनौती भी होगी।


दोस्तो, मेरा लेख कैसा लगा जरूर बताना, आपके कमेंट का प्रतिक्षित रहूंगा, जरूर बताना साथियो।


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